*** पचराही छत्तीसगढ़ ***
छत्तीसगढ़ की धरती कला संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है यहां कई पुरातात्विक स्थल हैं, कई पुरातात्विक मंदिर,किला, खंडहर ,महल, मूर्तियां है जो आज भी उसी अवस्था में हमे देखने को मिलता है। राजिम, शिवरीनारायण ,सिरपुर, मल्हार, ताला ,रतनपुर डिपाडीह, भोरमदेव, घटियारी ,बारसूर ,दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति का केंद्र है जो विश्व विख्यात है इन्हीं में से एक है – पचराही….

आज हम आपको छत्तीसगढ़ के इतिहास को बताने वाले गाँव पचराही के बारे में बताएँगे जो एक पुरातात्विक स्थल हैं इसे हमें छतीसगढ़ के प्रचानी इतिहास के बारे में बहुत सी जानकारिया प्राप्त होती है।
पचराही कंहा है
पचराही छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर दूर हाॅप नदी के किनारे मैकल पर्वत की गोद में बसा है। पचराही एक छोटा सा गांव है। यहां के निवासियों का कहना है कि उनके पूर्वज बताते थे कि यहां पांच रास्ते हैं जो भोरमदेव ,रतनपुर ,मंडला, सहसपुर और लाजिका के लिए निकलता है इसीलिए इसका नाम पचराही पड़ा है।
कई लोगों को यह भी कहना है कि यहां कंकाली मंदिर था जो देवी स्वरूप धारण कर आया करती थी, लोग उनके लिए पचरा गीत गाया करते थे इसी कारण यहा के लोग इस स्थान को पचराही कहते है।
पचराही की पहली खुदई कब हुई
12 फरवरी 2008 को इसकी पहली खुदाई हुई। पचराही में जिस स्थान पर खुदाई हुई हैं वाह स्थान एक टीले के रुप में था जिसके ऊपर मां कंकाली की मूर्ति था यहां हिंदू धर्म के अलावा जैन धर्म की मूर्तिया और मंदिर प्राप्त हुए हैं जिनका निर्माण 9वी ईस्वी से 19वी ईस्वी सदी तक किया गया होगा पचराही स्थापत्य और शिल्प कला का बहुत बड़ा केंद्र भी था।
पचराही में मिले जीवाश्म
कुछ समय पहले यहां की खुदाई में दो जलीय प्राणी के जीवाश्म मिले है जिसमे एक मोलुस्का (घेंघा) परिवार का है और दूसरा पायला परिवार का है । वैज्ञानिक का कहना है की मौलुस्का जीवाश्म का काल लगभग 13 करोड़ साल हैं। भारत में पहली बार खुदाई में इन जल्लीय प्राणियों के जीवाश्म छत्तीसगढ़ के पचराही में मिला है। इसी के साथ यह आदिमानव के आवास के सबूत भी मिले है जहा से उतर पाषाण काल और मेथोलिथिक काल के बारीक औजार भी प्राप्त हुए है।
सबसे पुराने पत्थर के औजार
हॉप नदी के किनारे बसे हुये एक गांव से बहुत पुराने पत्थर के औजार प्राप्त हुआ है। जिसको छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना पत्थर का औजार माना जा रहा है। यह कि खुदाई से ईट से बनी हुई मंदिर प्राप्त हुऐ है साथ में सोमवंशी काल के पार्वती और कार्तिके की मूर्ति भी प्राप्त हुआ है खुदाई होने से पहले इस टीले में सोमवंशी काल के तोरण द्वार और बहुत से मूर्तिया थे पचराही से कुछ दूरी में खैरागढ़ संग्रहालय है जहा खुदाई से प्राप्त मूर्तिया ,सिक्के, औजार मिट्टी के बर्तन आदि चीजों को रखा गया है।
सिक्को की खोज
सोमवंशीयो के अलावा यहां कल्चुरी राजो का भी सासन हुआ करता था। 25 फरवरी 2008 को यह की खुदाई से 12 सोने का सिक्का और 25 चांदी के सिक्के मिले है। यह पहली बार कल्चुरी राजा प्रतापमल्ल देव के सोने का सिक्का मिला है जिसमे 2 सोने के सिक्के रत्नदेव का है। जाजल्लदेव और पृथ्वीदेव का भी चांदी का सिक्का मिला हैं। यह पर मुगल काल के भी एक दर्जन से अधिक सिक्के मिले है।
पचराही व्यापार और वास्तुकला का केंद्र
पचराही 11वी-12वी ईस्वी में शिल्प और वास्तुकला और सांस्कृतिक का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। यहां आम और खास दोनो प्रकार के लोग रहते थे जिनके दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुएं भी खुदाई से प्राप्त हुए है जैसे खिलौने ,मिट्टी के बर्तन, गहने, औजार, लोहा, तांबा आदि खुदाई से यह खंजर और हटकारडी भी प्राप्त हुआ है यह स्थान व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। wikipedia

पचराही परिक्षेत्र में पंचायत शैली के साथ साथ राजपुरूष, उमा-महेश्वर के बहुत सुंदर मूर्ति मिला है। पचराही में अभी तक 6टन मंदिर के अवशेष मिल चुके हैं।हॉप नदी के किनारे बफेला गांव के टीले में जैन मूर्ती के शिल्पखंड को देखा जा सकता हैं जिसमे धर्मनाथ, शांतिनाथ, और पार्श्वनाथ के खण्डित मूर्ति रखा हुआ हैं। पास में ही बावा डोंगरी नाम के स्थान में जैन मंदिर के द्वारा महावीर स्वामी की मूर्ति रखा गया है । पचराही छत्तीसगढ़ का गौरव है जिसका सोर आज पूरी दुनिया में है।
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