।। वन है तो जीवन है ।।
Hasdeo Bachao Andolan – छत्तीसगढ़ जो अपने हरियाली और आदिवासी लोगों के लिए जाना जाता है वर्तमान समय में सरगुजा जिले के प्रभावित गांव सालही में हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने के लिए किसानों द्वारा जन आंदोलन चलाए जा रहा है। जंगलों को बचाने के लिए यहाँ के किसान पिछले 10वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं लेकिन अभी तक इनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया यहाँ के किसानों ने कई पंचायतों में जाकरइस कानून को वापस लेने के लिए कहा चूके है।

सालो से हो रहा हसदेव अरण्य का विनाश
हसदेव को उजाड़ने वाले लोगो द्वारा पिछले एक दशक से जंगल काटकर कोयला खनन किया जा रहा है जिसके बाद इस इलाके में दो नए खदान खोले जाने की अनुमति मिलने के बाद अब क्षेत्र के दो गांव के लोग कोयला खदान के विरोध में आ गए हैं और अपने जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए कई दिनों से धरने पर बैठे हैं इस दौरान क्षेत्र के लोगों ने उग्र प्रदर्शन भी किया और कई गांव वासियों के खिलाफ़ मामला भी दर्ज हुआ।
हसदेव अरण्य में काटे जाएंगे साढ़े चार लाख पेड़
हसदेव को बचाने में जुटे इन ग्रामीणों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। सबसे खास बात और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरे क्षेत्र में जो पेड़ पौधे पाए जाते हैं वो काफी संख्या में हैं और जब कुछ नई खदाने खुलने वाली है जिसका विरोध ये कर रहे हैं उनके खुलने के कारण यहाँ तकरीबन 400000 से अधिक पेड़ काटे जाएंगे ऐसे में इनकी सभ्यता कहाँ सुरक्षित रह पाएगी इनके जल जंगल जमीन कहाँ सुरक्षित रख पाएंगे।
हरियरपुर सालही, फतेहपुर खाट पल्हरी के गांव के लोग पिछले 10 वर्षों से यहाँ स्वीकृत कोल माइनिंग परसा कोल खदान के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि यहाँ जितनी भी स्वीकृतियां ली गई है वो फर्जी ग्राम सभा द्वारा लिया गया है। किसानों ने बताया कि 26 अप्रैल 2022 को रात 3:00 बजे पेड़ों को काटा जा रहा था तब गांव वालों ने जाकर इसके विरुद्ध आवाजें उठाई,तब जाकर पेड़ों की कटाई बंद की गई
एक अनुमान के अनुसार इन जंगलों के नीचे करीब पांच अरब टन का कोयला मौजूद है और इस लिहाज से इस इलाके में खनन यानी माइनिंग एक बहुत ही बड़ा व्यवसाय बन चुका है जिसकी वजह से स्थानीय लोग कोयला खनन कर रहे हैं कॉरपोरेटरों के खिलाफ़ लंबे समय से विरोध प्रदर्शन करते आ रहे हैं
सरकार द्वारा किया गया भूमि आवंटन
2015 में Adani enterprises और एक राज्य बिजली कंपनी को हसदेव के जंगलों में कोयला खनन करने के लिए एक बड़ा भंडार आवंटित किया गया था ये था पार्सल कोल ब्लॉक , खनन गतिविधियों के लिए भारत सरकार ने हसदेव अरण्य वनक्षेत्र में 30 कोल ब्लॉक आवंटित किए हैं Parsa East Kete Basen (PEKB) के दो बेसन को राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को आवंटित किया गया है जिसके MDO Adani enterprises द्वारा पहले ब्लॉक में 2013 से खनन कार्य किए जा रहे हैं एवं दूसरे ब्लॉक में 2028 से खनन कार्य करने की योजना बनाई जा रही है।
कानूनी नियमों का किया उल्लंघन
2006 वन कानून(Forest right act) के अंतर्गत किसी भी वन भूमि के अधिग्रहण के लिए, संबंधित ग्राम सभाओं के लिखित सहमति पत्र की जरूरत होती है। जो इस क्षेत्र में नहीं की गई है।
सरकार के निर्णय का विरोध

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में इसे खनन के लिए एक No Zone घोषित कर दिया था हालांकि इस stetment को 2011 में ही रद्द कर दिया गया था और 2 साल बाद यानी की 2013 में अडाणी इंटरप्राइजेज द्वारा पहले चरण में कोयला खनन का कार्य शुरू किया गया| पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हसदेव अरण्य क्षेत्र के परसा कोल ब्लॉक में कोल माइनिंग की अंतिम स्वीकृति दी थी जिसका विरोध किसानों और आदिवासी लोगों द्वारा किया जा रहा है पूरे प्रदेश में हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने के लिए आंदोलन किए जा रहे हैं।
राहुल गाँधी ने दिलाया था भरोसा
जून 2015 में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हसदेव अरण्य जंगल के मदनपुर गांव का दौरा भी किया था। राहुल गाँधी ने वहा आदिवासियों से वादा किया था कि कांग्रेस पार्टी उनके साथ हैं वर्तमान में चल रही इस यात्रा की शुरुआत मदनपुर की उसी गांव से हुई थीं, 2015 में राहुल गाँधी ने हसदेव अरण्य क्षेत्र के सभाओं के लोगों को संबोधित किया था और उनके जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था और यह कहा था कि इस संघर्ष में वे उनके साथ है।
ICFRE की रिपोट
Indian council of forestry research and education (ICFRE) की तरफ से एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि इस क्षेत्र के 23 प्रस्तावित कोयला ब्लाकों में से 14 को घने जंगल होने की वजह से मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। अध्ययन में यह लिखा है, की खनन से संबंधित भूमि उपयोग परिवर्तन, वन कवर, वन प्रकार और वन विखंडन को नुकसान पहुंचाएगा ।
जंगलों को नष्ट कर हो रही खनन

इसके पूर्व PEKB खदानो में खनन के नकारात्मक प्रभावों को किसान महसूस कर चुके है | PEKB खदान में खनन से जंगल और जमीन का विनाश एवं जल प्रदूषण आदि समस्याओं का किसानों को सामना करना पड़ा था और उनके आदिवासी संस्कृति पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा इस बार वे नहीं चाहते कि ऐसी स्थिति परसा कोल ब्लॉक खदान में हो इसलिए उन्होंने कॉर्पोरेट का कड़ा विरोध किया
छत्तीसगढ़ के सबसे घने वन
यहाँ के पेड़ 200 से 300 साल पुराने हैं जिन्हें कोल माइनिंग के लिए यहाँ के 3 से 4 लाख पेड़ काटे जाएंगे। हसदेव अरण्य क्षेत्र छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक घने वनों वाला क्षेत्र क्षेत्र है यह भारत के सबसे पुराने जंगलों में से एक है। इसे मध्य भारत का फेफड़ा भी कहा जाता है। लगातार परसा कोल ब्लॉक में पेड़ों की कटाई की जा रही है। अब तक सैकड़ों पेड़ काट दिए गए।
पारंपरिक और धार्मिक स्थान
यह क्षेत्र भारत के आदिवासियों का पारंपरिक घर है किसानों का कहना है कि यहाँ उनके कई पीढ़ी रहते हुए आ रहे हैं। जंगलों से उन्हें फल लकड़ी और औषधियां आदि की प्राप्ति होती है यहाँ उनके धार्मिक देवी देवताओं का निवास है जंगलो में यहाँ के आदिवासि अपने देवी देवताओं का पूजन करते है। साल में एक बार यहाँ कठौली की पूजा किया जाता है।
प्रकृति का विनाश

जंगल जमीन का सर्वनाश कर के इंसान कौन सी तरक्की कर लेगा। ऊर्जा के स्रोत सिर्फ जल जंगल जमीन बर्बाद कर के नहीं मिल सकता है आज विज्ञान बहुत तरक्की कर चुका है, हमारे पास ऊर्जा के और बहुत से संसाधन उपलब्ध हैं जो ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है।
वन्यजीवों से छिना जा रहा उनका घर
हसदेव के जंगलो में बहुत से वन्यजीव रहते है| पेड़ो के कटने से इनकी जीवन खतरे में आ आयेगी , धीरे धीरे ये विलुप्त होने लगेंगे। यहाँ सैकड़ों की संख्या में हाथी भी रहते हैं।
जीवन के लिए जरूरी है पेड़
कोरोना काल में जहाँ इंसान ऑक्सीजन के लिए दर दर भटक रहा था, बड़े से बड़े धनवान व्यक्तियों के धन भी काम नहीं आ रहे थे, लोग ऑक्सीजन के बगैर तड़प तड़प के मर रहे थे उसी ऑक्सीजन को देने वाले पेड़ों को आज हम काटते जा रहे हैं आने वाले समय में इसके बहुत विनाशकाय परिणाम सामने आएँगे। हमें अपने जंगलों को बचाना होगा ताकि भविष्य में आने वाले पीढ़ियों को हम अच्छी प्राकृतिक वातावरण दे सके।
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