आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज जिन्हें आदिमानव कहा जाता है जंगलों में स्थित पहाड़ों के गुफाओं में रहते थे ऐसी ही ऐतिहासिक गुफा हमें छतीसगढ़ के रायगढ़ जिले के अंतर्गत स्थित बसनाझर और सिंघनपुर के शैलाश्रय – शैलचित्र में देखने को मिलता है ऐसे स्थान को शैलाश्रय कहते हैं।

बम्हनीन पहाड़ी
छतीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से मात्र 8 किमी दूरी पर दक्षिण दिशा की ओर अर्ध चंद्राकार आकृति में 2 हजार फीट की ऊंचाई पर बम्हनीन पहाड़ी स्थित है, इस पहाड़ के कई हिस्सों में हमें आदिमानव कालीन शैल चित्र देखने को मिलता है। इन शैलाश्रयों में देवोपासना के अनेक दृश्य अंकित होने के कारण ही इसे बम्हनीन पहाड़ी कहा जाता है। इस स्थान पर 30 हजार वर्ष पूर्व से लेकर मध्य पाषाण तथा नव पाषाण से धातु युग के संक्रमण काल तक के प्रागैतिहासिक मानवों के क्रियाकलापों के साक्ष्य मौजूद हैं।
कंहा है? बसनाझर बम्हनीन पहाड़ी शैलाश्रय
बसनाझर छतीसगढ़ के रायगढ़ जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूरी पर एवं खरसिया रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दूरी पर आग्नेय कोण में स्थित है। यह एक हरी-भरी वनस्थली है यही एक पहाड़ी पर आदिमानव कालीन शैलचित्र पाया गया है इस पहाड़ के कई हिस्सों में हमें आदिमानव कालीन शैलचित्र है पहाड़ी की पूर्व दिशा में ओरमांद नदी बहती है। इस स्थान पर पत्थरों पर अधिक संख्या में शैलचित्र उकेरे गए हैं इस कारण इसे बसनाझर शैलाश्रय भी कहा जाता है।

आदिमानव के क्रियाकलापों के साक्ष्य
पहाड़ी की पूर्व दिशा में ओरमांद नदी बहती है। इस स्थान पर 30 हजार वर्ष पूर्व से लेकर मध्य पाषाण तथा नव पाषाण से धातु युग के संक्रमण काल तक के आदिमानव के क्रियाकलापों के साक्ष्य मौजूद हैं। इसके साथ ही पशु पक्षी, हिरण, हाथी, वराह, गोह की आकृति भी चित्रित हैं। इस तरह यह स्थल आखेटक गोत्र के प्रारंभिक कृषक और पशुपालन में बदलाव के प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं।
सिंघनपुर के शैलाश्रय – शैलचित्र
सिंघनपुर पहाड़ी अनेक पुरातात्विक, ऐतिहासिक महत्व के साथ शैलचित्रों को संजोकर रखा है। प्रकृति के इस स्थल को देखने से ज्ञात होता है कि मानव निर्मित अनेक औजार, दिनचर्या की वस्तुएं इतिहास की गाथा को संजोए रखने के लिए काफी हैं।
कंहा है सिंघनपुर के शैलाश्रय – शैलचित्र

छतीसगढ़ के रायगढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किलोमीटर दूरी पर रायगढ़ खरसिया मार्ग पर स्थित है ग्राम सिंघनपुर, यहां स्थित पहाड़ी पर हमें अनेक प्राचीन शैलाश्रय देखने को मिलता है जंहा विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी मानव एवं विभिन्न आकृति के चित्र देखने को मिलता है हजारों वर्षों तक प्रकृति से संघर्ष कर हमारे पूर्वजों की यह अभिव्यक्तिया आज भी अपने अस्तित्व बनाए रखने में सक्षम रही है इस पहाड़ी पर लगभग 10 शैलाश्रय है।
गुफा और शैलाश्रय में अंतर
दोनों में एक बात सामान्य है कि दोनों ही प्राकृतिक हैं, मतलब उन्हें (गुफा या शैलाश्रय को) बनाने में मानव का कोई हाथ नहीं रहा। हाँ, जिन प्राकृतिक गुफाओं में मानव के रहने, बसने के चिह्न या उसके किसी गतिविधि, क्रियाकलाप के अवशेष या प्रमाण मिलते हैं, केवल उसे ही शैलाश्रय स्वीकार किया जाता है, बाकि सब प्राकृतिक गुफा मात्र ही हैं। गुफा जिसका उपयोग मनुष्य ने अधिवास हेतु किया हो, वही है- ‘शैलाश्रय यह एक ऐतिहासिक धरोहर है।
आदिमानव ने गुफाओं में चित्र क्यों बनाएं
आदिमानव संभवत आगामी पीढ़ी को जीवन जीने के तरीके सिखाने के लिए इन चित्रों का प्रयोग करते थे।
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