हर काल में ग्राम व्यवस्था की अपनी एक अलग परंपरा रही है। चाहे वह राजाओं का काल हो, या मुगलकाल या फिर अंग्रेजों की शासन व्यवस्था। सभी ने अपने-अपने तरीके से ग्रामों के विकास के लिए अपनी एक व्यवस्था बनाई थी। इसी तरह ग्रामों के विकास के लिए कलचुरी काल में ग्राम व्यवस्था बनाई गई थी, जो इस प्रकार हैं
कलचुरी शासन काल में अनेक ग्रामों एवं नगरों का निर्माण कर उन्हें विकसित करने के उल्लेख मिलते हैं। नगर चूंकि सभी प्रकार की सुविधाओं से युक्त होते थे, फिर भी अधिकांश जनसंख्या गांवों में ही निवास करती थीं। जिले को विषय कहा जाता था. जिसके अंतर्गत अनेक ग्राम आते थे। इन ग्रामों में प्रमुख ग्रामों को ज्येष्ठिका ग्राम कहा जाता था। प्रत्येक ग्राम की सीमा निश्चित होती थी, ताकि शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, राजस्व व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे। गाँव के प्रमुख को गौटिया कहा जाता था।
स्थानीय स्वशासन
गांवो में शासन व्यवस्था चलाने के लिए एक संस्था होती थी, जिसे पंचकुल कहा जाता था। इसमें 5 से 10 सदस्य होते थे जिन्हें महत्तर कहा जाता था, पंचकुल के प्रमुख सदस्य को महत्तम या ग्रामकूट कहते है।
आर्थिक दशा
इस काल में गांवो की सीमा पर स्तंभ गाड़े जाते थे, उस पर दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती थी। इसे गांव की सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक माना जाता था। गांवों में तालाबों का निर्माण किया जाता था। यहां गांव की ही संपत्ति होती थी , जिसके द्वारा पूरे गांव के खेतों की सिंचाई की जाती थी। आजीविका का मुख्य साधन कृषि था। भूमि को हल से नापा जाता था, एक बैल द्वारा जोती जाने वाली भूमि = 1हल कहलाता था जो लगभग 5 एकड़ होता था।
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गांवों में राज्य अधिकारियों के लिए व्यवस्था
कलचुरी शासन काल में जिले को विषय कहा जाता था, जिसके अंतर्गत अनेक ग्राम आते थे। इन ग्रामों में प्रमुख ग्रामों को ज्येष्ठिका ग्राम कहा जाता था। राजा को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते थे जिन्हें दिव्य वृष्टि, प्राति भेदिका कहा जाता था। दिव्य अर्थात उपहार प्राप्त करना, विष्टी अर्थात समय समय पर उपहार देने वालों की सेवाएं प्रदान करना, इसे बेजाग भी कहा जाता था। राज्य अधिकारियों के गांवों में आने पर उनकी आवास, खानपान की व्यवस्था के साथ यदाकदा उपकर भी देना होता था।
स्वर्ग की अल्कापुरी
कवि राजेश्वर ने कलचुरियों की राजधानी त्रिपुरी की उत्पत्ति के संबंध में बताया कि जब त्रिपुरासुर को शिव ने अपनी क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया, तब तीन पुर आकाश से अवतरित हुए। त्रिपुरी की शोमा विलक्षण बताई गई है। असंख्य सुंदर मूर्तियां दूर दूर तक भवनों के अवशेष नयनाभिराम थे।
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कलचुरियों की प्रथम राजधानी तुम्माप्प को रतनदेव ने अनेक देवालयों, विशाल प्रासादों, सुंदर आम्रवृक्षों के उपवनों एवं फल फूलों के बगीचों का निर्माण करवा कर इतना सुसज्जित एवं अप्रतिम सुंदर बनाया कि इसे स्वर्ग की अल्कापुरी की उपमा दी गई। यहां विद्यमान खंडहर आज भी इनकी बानगी प्रस्तुत करते हैं।इसके अलावा मल्हार जाजल्ल नगर विकर्णपुर आदि ऐसे अनेक नगर थे जो समस्त छत्तीसगढ़ में अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे।
सुख शांति और न्यायपूर्वक शासन
मल्हार के शिलालेख से विदित होता है कि इन स्थानों पर सदैव खुशहाली छाई रहती थी, तथा दूर दूर तक संकट का नामों निशान न था। कलचुरियों का शासन न्यायपूर्वक चला करता था, तथा वहां की प्रजा सामान्यतः दैवीय और मानवीय आपत्तियों से मुक्त होकर राज्य में सुख शांति से निवास करती थी जिसका ही परिणाम था, कि इस काल में कला के प्रत्येक आयाम का सर्वांगीण विकास हुआ।
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धार्मिक सांस्कृतिक और शिक्षा की दशा
कलचुरी काल में धर्म विभाग एक पृथक विभाग था, जिनका प्रमुख महाधर्मकरणीक या महापुरोहित होते थे। कलचुरी शासक मुख्यतः शिव भक्त थे, इसके अलावा वे विष्णु, राम व कृष्ण भगवान के भी भक्त थे। कलचुरि लोग अपने ईष्ट देवी महामाया के उपासक थे, जो शाक्य धर्म का परिचायक था। शिक्षा के केंद्र के रूप में रतनपुर, मल्हार, सिरपुर, आरंग, राजिम, रायपुर, खैरागढ़ आदि प्रसिद्ध थे।
FAQ :-
1. कलचुरी काल में जिले को क्या कहते थे ?
उतर – विषय
2. गाँव के मुख्या को क्या कहते थे?
उतर – गौटिया
3. प्रमुख ग्रामो को क्या कहते थे ?
उतर – ज्येष्ठिका ग्राम
4. पंचकुल के प्रमुख सदस्य को क्या कहते थे?
उतर – महत्तम या ग्रामकूट
5. गाँवों में आजीविका का मुख्य साधन क्या था?
उतर – कृषि
6. कलचुरी शासक मुख्यतः किसके भक्त थे?
उतर – शिव
7. कलचुरि लोग किस ईष्ट देवी के उपासक थे?
उतर – महामाया
8. कलचुरियों की प्रथम राजधानी क्या थी?
उतर – तुम्माप्प
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