भारत के इतिहास में कई ऐसे महापुरुष हुये जो सिर्फ इसलिए महापुरुष नहीं थे कि उनके भीतर कुछ करिश्माई शक्तियां थीं, बल्कि वो महापुरुष इसलिए थे कि वो समाज के हर धर्म, वर्ग, जाति, संप्रदाय और समुदाय को बराबरी की नजर से देखते थे। उनकी गाथाएं इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में इसलिए दर्ज हुई क्योंकि उन्होंने हमेशा अपनी सत्ता और उसकी ताकत का इस्तेमाल अपने क्षेत्र की जनता के दुख दर्द को हरने के लिए किया था।

व्यक्तिगत परिचय – personal introduction
इन्हीं महापुरुषों और शूर वीर योद्धाओ में से एक थे, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज, जो एक बहादुर बुद्धिमान और न्यायपूर्ण शासक होने के साथ ही विचारधारा और विशाल ऋदय के मालिक थे। जिसमें सैकड़ों धर्म और वर्ग के लोग बसते थे। उनका स्वभाव शालीन, गंभीर और निर्णायक क्षमता से भरा हुआ था।
वे सिर्फ एक बहादुर और निडर शासक ही नहीं थे बल्कि समय रहते सटीक निर्णय लेने की ताकत से भी उद्धृत थे। चतुराई और कुशलता के साथ दुश्मन से निपटते थे शिवाजी महाराज विचारधारा के पोषक थे, जिन्हें समाज के सभी धर्मों और समुदाय के लोगों को एकजुटता के बंधन में बंधने का हुनर भी बखूबी आता था।
प्रारंभिक जीवन – early life
शाहजहाँ के जमाने में जन्मे थे वीर शिवाजी महाराज। शिवाजी के पिता शाहजी मुगल शासको के लिए काम करते थे जो बीजापुर सल्तनत के जागीरदार थे, उसी समय शिवाजी की माँ जीजाबाई गर्भवती हो गई थी। उनके गर्भ में भारत का एक महान सुरवीर पल रहा था। एक दिन जब उनके गर्भ में तेज दर्द उठा तो शाह जी को अचानक अपने एक पुराने किले शिवनेरी की याद आई जो पुणे जिले के जुन्नर के करीब स्थित था। ये दुश्मन के हमले से बचने के लिए सबसे बेहतर ठिकाना था।
किले के इर्द गिर्द कुछ ऐसी मजबूत दीवार और दरवाजे थे जिन्हें भेद पाना शत्रुओं के लिए आसान नहीं था। शिवनेरी के इस किले में जीजा बाई ने एक भावी वीर पुरुष और योद्धा को जन्म दिया। जब शिवाजी का जन्म हुआ तो उस समय उनके पिता के पास कोई रियासत जागीरदारी शेष नहीं रह गई थी। पिता के पीछे आदिलशाही के सुल्तान पड़े हुए थे।
छत्रपति शिवाजी का जन्म – Birth of Chhatrapati Shivaji
मराठो के शान कहे जाने वाले शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में हुआ था, इनके माता का नाम जीजाबाई और पिता का नाम शाहजी भोसले था। पिता शाहजी भोसले उस समय मुगलों के सेवा में लगे हुये थे, इस लिए इनका पूरा बचपन का समय इनके ,माता जीजाबाई के साथ बिता जो उन्हें बचपन से ही रामायण, महाभारत और भागवत जैसे सभी पौराणिक कथाएँ सुनाये करते थे लगे।
जिसे सुनकर उनके भीतर का जज्बा जाग उठा और वे राष्ट्रहित में अपने जीवन को समर्पित करने की सोच में डूब गए। उनके मन पर धीरे धीरे वीरता और साहस से जुड़ी कहानियों की छाप बढ़ने लगी। और वो इन कहानियों को अपने कर्मों के सांचे में ढालने की कोशिश करने लगे। इस नन्ही उम्र से ही उनके भीतर राष्ट्र सेवा की भावना जागने लगी थी। वे बचपन से ही मुगलों से लोहा लेने की सोचने लगे थे।
असाधारण ही होते है किसी युग पुरुष के विचार – The thoughts of an era man are extraordinary
ये किसी असाधारण प्रतिभा के धनी व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान होती है की वो समाज के अन्य लोगों से बिल्कुल अलग विचार रखता है। जिंस उम्र में बच्चे अपने खिलौनों के साथ वक्त गुजारते थे। शिवाजी उस उम्र में युद्ध के गुण और कौशल सीखने और सिखाने में लगे रहते थे। बचपन में ही अपनी उम्र के बच्चों को इकट्ठा करते और नकली किला बनाकर उन पर जीत का परचम लहराने का खेल खेला करते थे। बचपन का ये खेल इस बात का इशारा है कि शिवाजी को किले फते करने का किस कदर शौक और जज्बा रहा होगा। बचपन का ये खेल भी जवानी के पड़ाव पर पहुँचकर वास्तविक रूप ले बैठा और आखिरकार किला फतह करने का उनका सपना साकार हो गया।
शिवाजी महाराज को मिला मावालियो का साथ – Shivaji Maharaj got the support of Mawalis
छोटी उम्र से ही शिवाजी महाराज स्वाभाविक नेतृत्व करने वाले थे। उस समय वहा मावल नाम का एक गाँव हुआ करता था (वर्तमान में पुणे) यहा गरीब और पिछड़े लोग रहा करते थे जिनको शिवाजी महाराज देखा करते थे और उनको बताया करते थे की मुगल लोग मराठाओ को नौकर समझते है वह उन्हें बताते थे की गुलामी एक मानसिकता है और इसे तोड़ा जा सकता है उन्होंने गाँव के सभी लोगो को अपने साथ मिलाकर एक सेना तैयार किया और यह ऐलान किया की मैं स्वराज यात्रा निकालूँगा।
शिवाजी महाराज मात्र 16 साल की उम्र में अपनी छोटी सी सेना के साथ मिलकर तोड़ना के किले पर विजय प्राप्त किया। इस विजय से शिवाजी महाराज को बहुत सारा खाजाना प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने अपनी सेना का विस्तार किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक – Coronation of Chhatrapati Shivaji Maharaj
हिंदू स्वराज्य की पुन स्थापना के लिए 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में वैदिक पद्धति से शिवाजी राजे का भव्य राज्य अभिषेक हुआ और वो शिवाजी से छत्रपति शिवाजी महाराज कहलाए। आलम गीर के अस्तित्व को मिटाने अब एक छत्रपति अवतरित हो चुका था, जिनका साम्राज्य साल्हेर से लेकर तंजावुर तक फैला था। इंद्रप्रस्थ, देवगिरी, वारंगल, कर्णावती, चित्तौड़, विजयनगर और ऐसे कई विनष्ट साम्राज्यों का प्रतिशोध इस दिन पूरा।
युद्ध निति – war strategy of shivaji maharaj
छत्रपति शिवाजी महाराज अपने छापामार, द्विकंटक नीति, गोरिला युद्ध के लिए जाने जाते थे इसे गनिमी कावा भी कहते है ये पहाड़ो के अलग अलग रास्तो से आकर दुश्मनों पर आक्रमण करते थें इस लिए इन्हें पहाड़ी चूहा भी कहते थे।
भारतीय नवसेना के जनक – Father of Indian Navy

छत्रपति शिवाजी ने समुद्री तट रेखा का महत्व को समझते हुये गुजरात से कर्नाटक तक तट रेखाओ का निर्माण किया और वहा अपनी समुद्री सेना नुक्त कर अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया इस लिए इन्हें भारतीय नवसेना का जनक(Father of Indian Navy) कहते है।
मुगलों की टक्कर में भी नहीं था कोई भारतीय शासक
शिवाजी के समय मुगल सल्तनत अपने राजनैतिक क्षेत्र पर कब्जे और वर्चस्व के मामले में चरमसीमा पर पहुँच चुकी थी। उनके मुकाबले में हिंदुस्तान भर में शिवाजी के अलावा कोई और भारतीय शासक खड़े होने की जरूरत? और हिम्मत नहीं कर रहा था। उस दौर में भारत पर शाहजहाँ की हुकूमत थी, जिसे किसी से भी विशेष चुनौतियों का सामना नहीं था। इसलिए मुगलों की महत्वकांक्षा अब यही थी की दक्षिण भारत को भी अपने साम्राज्य के अधीन कर पूरे भारत पर कब्जा जमा लिया जाए।
अफजल खान का संधि प्रस्तावन – Treaty proposal of Afzal Khan
इस समय तक वहा का तानाशाह आदिलशाह छत्रपति शिवाजी से बहुत तंग आ चूका था इसलिए आदिलशाह ने अपने सेनापति अफजल खान को शिवाजी को मारने भेजा। एक बार अफजल खान ने शिवाजी को एक संदेश भेजा इसमें अफजल खान ने कहा था की मैं तुमसे संधि करना चाहता हूँ इस लिए तुमसे मिलना है, लेकिन नियम यह है की तुम अकेले आवोगे ना तुम्हारे पास कोई सेना हेगी ना मेरे पास तुम्हे बिना हथियार के अकेले आना होगा शिवाजी इस पर मान गाये wikipedia
10 नवम्बर 1659 को जब शिवाजी महाराज अफजल खान से मिलने प्रतापगढ़ पहुचे तो अफजल खान ने गले लगने के बहाने शिवाजी के पीठ में खंजर से हमला कर दिया परन्तु कपड़े के नीचे लोहे का कवच पहने शिवाजी महाराज ने अपना बाघ नख निकाल कर अफजल खान का पेट फाड़ दिया।
शिवाजी महाराज का मुगलों से जंग – Shivaji Maharaj’s war with Mughals
संकीर्ण वादी विचारों से ऊपर उठकर शिवाजी महाराज सिर्फ हिंदुओं की भावनाओं की कद्र नहीं किया करते थे। शिवाजी, महाराष्ट्र, सूबे से लेकर देश के हर एक नागरिक की धार्मिक भावनाओं का दिल से आदर सम्मान करने वाले इंसान थे। वे पहले शासक थे, जिन्होंने मुगल साम्राज्य के ताकतवर बादशाहो को दातो तले चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। उनकी भिड़ंत? मुगल साम्राज्य के सबसे बलशाली सम्राट औरंगजेब आलमगीर से थी। ये जंग अपने राज्य के अस्तित्व और स्थापना के लिए लड़ी गई एक राजनैतिक जंग थी।
शिवा जी के गुरु और शिक्षक कौन थे? – Who were the guru and teacher of Shiva ji?
शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु समर्थ रामदास थे एवं दादा कोंणदेव उनके संरक्षक एवं शिक्षक थे जिन्होंने शिवाजी को सैन्य प्रशिक्षण दिया था।
निष्कर्ष – conclusion
अगर छत्रपति शिवाजी महाराज ना होते तो ना मंदिर होते हैं, ना मूर्तियां होती ना हिंदू धर्म होता। भारत एक उदारवादी देश नहीं बल्कि एक शरिया देश बन गया होता।
छत्रपति शिवाजी महाराज के निर्वाण के बाद औरंगजेब खुद दखन में आकर अगले 27 वर्षों तक जीतने का प्रयास करता रहा और पराजय के दुख में तड़पकर मरा। मराठाओं की वीरता ने संपूर्ण भारत की खोई हुई आत्मविश्वास को जगा दिया था और इस्लामी आक्रमणकारियों को रौंद देते हुए गौरवपूर्ण हिंदू साम्राज्य की स्थापना किऐ
FAQ. –
1.शिवाजी राजा कब बने?
उतर – हिंदू स्वराज्य की पुन स्थापना के लिए 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में वैदिक पद्धति से शिवाजी राजे का भव्य राज्य अभिषेक हुआ और वो शिवाजी से छत्रपति शिवाजी महाराज कहलाए।
2.शिव जी के धार्मिक गुरु कौन थे?
उतर – शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु समर्थ रामदास थे एवं दादा कोंणदेव उनके संरक्षक एवं शिक्षक थे जिन्होंने शिवाजी को सैन्य प्रशिक्षण दिया था।
3.शिवाजी महाराज का जन्म कहाँ हुआ था?
उतर – मराठो के शान कहे जाने वाले शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में हुआ था
4.शिवाजी महाराज के शिक्षक कौन थे?
उतर – दादा कोंणदेव उनके संरक्षक एवं शिक्षक थे जिन्होंने शिवाजी को सैन्य प्रशिक्षण दिया था।
5.शिवाजी महाराज महान क्यों हैं?
उतर – छत्रपति शिवाजी महाराज, जो एक बहादुर बुद्धिमान और न्यायपूर्ण शासक होने के साथ ही विचारधारा और विशाल ऋदय के मालिक थे। जिसमें सैकड़ों धर्म और वर्ग के लोग बसते थे। उनका स्वभाव शालीन, गंभीर और निर्णायक क्षमता से भरा हुआ था।
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